लेखनी प्रतियोगिता -22-Sep-2023 "यादें"
"यादें"
वो यादें बचपन की मुझे कितना तड़पाती है।
रोज़ आ कर मेरे नजदीक मेरी हंसी उड़ाती है।।
करती है रोज़ नया मज़मा मेरी एक ना सुनती है।
सलाखों की तरह कैद कर रूह को बेचैन करती है।।
कभी बन कर वो आँचल माँ के प्यार का मुझ पे बिखरती है।
कभी बाबा की डाँट की दस्तक मिरे कानों में चित्कार करती है।।
समुद्र से भी गहरी यादें कभी लहरों सी उठती हैं।
भिगो देती है बदन सारा ऐसे आ कर लिपटती है।।
बच्चों के झुरमुट को जब मैं गुजरते गलियों में देखती हूं।
वो शैतानियों की टोलियां मेरे अंदर से तब हो कर गुजरती हैं।।
मधु गुप्ता "अपराजिता"
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Gunjan Kamal
24-Sep-2023 07:46 AM
👏👌
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